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‘बालू का रेट’ बालू मंडी में आये हुए गाडियों पर निर्भर करती है | डिमांड सप्लाई का और प्राइस का एक अच्छा उदाहरण है |
जब मंडी में ज्यादा गाड़ी आ जाती है या कम ग्राहक पहुचते हैं तो बालू रेट कुछ कम हो जाता है ठीक विपरीत जब मंडी में कम गाड़ियां पहुचती है या ज्यादा ग्राहक पहुचते हैं तो बालू का रेट ज्यादा हो जाता है | यह कभी स्थिर नही रहता , हर दिन इसका रेट नया तय किया जाता है |
बालू का रेट ट्रक से unload करने में लगने वाले समय से भी बढ़ता घटता है | डीपो का रेट अमूमन कम तय होता है क्युकी वहा unload करने में कम समय लगता है और वो महीने में कई ट्रक खरीदते हैं | ग्राहक को ट्रक से खरीदने में फयदा होता है, नदी loaded ट्रक से थोडा और..
क्युकी बालू मंदी में ज्यादातर ब्रोकर ही बालू बेचते हैं इसीलिए उसका रेट ग्राहकों को देख कर भी किया जाता है | सीधे लोगो बेवकूफ भी बहुत बनाने हैं, उनसे 2-5 रूप cubic feet ज्यादा भी वसूल लेते हैं और नापी में भी गड़बड़ी करते हैं | इसीलिए बालू का कभी फिक्स नही हो पाता |
आज समस्तीपुर में बालू का भाव लगभग 6100 रूपए CFT तय किये गए थे | हर शहर का अपना रेट रहता है | अमूमन प्रति 10km पर 1रूपए cubic feet बढ़ जाती है |
बालू ही एक मात्र खनीज है जो बिहार को प्रकृति देती है | बिहार में कुल 11 प्रमुख नदियाँ हैं और इसके कई सहायक नदियाँ परन्तु बिहार में किसी भी नदी का उद्गम स्थल नही है | बिहार मैदानी क्षेत्र होने कारण यहाँ पर नदियों का बहाव कम हो जाता है और अपने साथ लाये खनिजो को आस पास के क्षेत्र में जमा कर देती है जिससे बिहार बालू जैसे प्राकृतिक संसाधनों की भंडार हो जाती है|
कोइलबर बिहार के आरा जिले में सोन नदी के किनारे बसा एक छोटी शहर है जहाँ से बालू का निर्यात किया जाता है | कोइलबर अपने सुनहले बालू के खदान के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलो में मशहूर है | यहाँ नाव के सहारे बीच नदी से मजदूरों के द्वारा बालू खनन होता है और उसे नाव के सहारे ही आस पास के मंडी में बेचा जाता है | नदी से बालू निकलने में मजदूर लोग काफी मेहनत करते हैं |
कोइलबर का बालू अच्छा इसीलिए मन जाता है कि इसमें मिटटी का अंश नही होता है | बालू में मिटटी के अंश होने से मकान/दूकान या अन्य कोई भी स्ट्रक्चर की लाइफ कम हो जाती है इसीलिए Engineers मिटटी मिले हुए बालू का उपयोग करने की सलाह नही देते